Nisha... भाग -1
निशा.........
निशा... यह शब्द जब मैं प्लेन में बैठा तब से मेरी जेहन में था और जब एयरपोर्ट से बाहर आया तब भी इसी एक शब्द ने मेरे दिल और दिमाग को जकड कर रखा हुआ था. प्लेन में चढ़ने से पहले से लेकर अभी एयरपोर्ट से बाहर निकलने के बाद तक मैं सिर्फ और सिर्फ यही सोचता रहा कि मैं क्या जवाब दूंगा निशा को... कि मैं क्यों एक हफ्ते बाद आया, कहां था मैं इतने दिन और यदि कोई जरूरी काम पर भी गया था तो मैंने उसे कॉल करके क्यों नहीं बताया कि मैं 1 हफ्ते बाद आऊंगा... मेरा मोबाइल क्यों बंद था... ऐसे कई सवाल, उस एक शब्द के साथ मेरे अंतर्मन को छल्ली कर रहे थे.
निशा से मेरी इंगेजमेंट मेरे बिजनेस टूर के पहले ही हुई थी. वो सब मामलों में मेरे लिए ठीक थी वह एक अच्छे खानदान से थी.. मुझसे प्यार करती थी और हम दोनों एक दूसरे को बचपन से जानते भी थे और सबसे खास बात ये कि निशा के पिताश्री का मेरे बिजनेस में बैकग्राउंड सपोर्ट होना और यदि निशा के पिता श्री का सपोर्ट हमें हमेशा के लिए चाहिए था तो उसके लिए मुझे निशा से शादी कर लेनी चाहिए थी. मेरे और निशा, दोनों के घर वाले इस रिश्ते से बहुत खुश थे सभी बेसब्री से उस दिन की राह देख रहे थे, जिस दिन निशा लाल जोड़े में सज संवर कर मेरी जिंदगी और मेरे घर में आने वाली थी.
पहले पहल तो मुझे भी कोई एतराज नहीं हुआ, शुरू शुरू में तो मैं भी यह मानता था कि निशा मेरे लिए एक परफेक्ट वाइफ साबित होगी. लेकिन इंगेजमेंट के बाद मैं जैसे बदल गया... मुझे निशा में कई कमियां नजर आने लगी. मैं उसकी छोटी से छोटी खामियों को लेकर दिल ही दिल यही सोचता कि... यदि ऐसा ही इसने आगे भी किया तो मैं कैसे इसके साथ अपनी पूरी जिंदगी बिता पाऊंगा ? और जैसे जैसे दिन बीतते गए ये ख्यालात मुझ पर हावी होते गया और इसी बीच मुझे एक हफ्ते के बिजनेस टूर के लिए देहरादून जाना पड़ा. जिस काम के लिए मैं देहरादून आया हुआ था वह काम अपने समय पर निपट गया... लेकिन इसी दौरान मै निशा से पूरे एक हफ्ते दूर रहा... मुझे इस बात का पक्का आभास हो गया कि निशा मेरे लिए किसी भी मायने में फिट नहीं बैठती. सिवाय एक के... और वो था उसके पिताजी का हमारे बिजनेस को सपोर्ट.
" क्या मैं अपने बिजनेस के लिए अपनी पूरी जिंदगी एक ऐसी लड़की के साथ गुजार दू, जिसे मैं प्यार ही नहीं कर सकता...?
" यह सवाल इस टूर में मैं ना जाने कितनी बार खुद से कर चुका था और हर बार मेरा जवाब ना मे होता.
"भाड़ मैं जाए निशा, उसका पैसे वाला बाप और यह बिजनेस..". जिस दिन मुझे वापस लौटना था उस दिन कुछ ऐसे ही ख्यालात मेरे सीने में चुभ रहे थे.
दिल कर रहा था कि कहीं दूर चला जाऊं... निशा से दूर, उसके पैसे वाले बाप से दूर, इन सब से दूर.. इतना पैसा तो मैंने कमा ही लिया था कि अपनी पूरी जिंदगी आराम से गुजार सकता हु. लेकिन घर वाले क्या कहेंगे..? वो लोगों को क्या जवाब देंगे, ऐसे ना जाने कितने सवालों ने मुझे घेर कर रखा हुआ था.
"तुम आ रहे हो ना... "एक हफ्ते पहले जब मुझे वापस आना था, तब मेरी फ्लाइट के लिए घंटा ही बचा था, जब उसने मुझे कॉल किया था.
" हां आ रहा हूं.. "मैंने बेरुखी से जवाब दिया. नफरत सी हो गई थी मुझे उससे, उसकी आवाज से, हर उस चीज से... जिसे वह पसंद करती थी.. लेकिन क्यों..?
इसका कारण शायद मैं खुद भी नहीं जानता था. दिल ही नहीं कर रहा था वापस दिल्ली जाने का.. और इसी दौरान मैंने एक बड़ा फैसला लिया. मैंने अपना मोबाइल बंद किया और जिस होटल में रुका हुआ था वहां से अपना सब सामान लेकर निकल गया. वैसे प्लान के मुताबिक मुझे जाना तो एयरपोर्ट था लेकिन मैं गया नहीं... कई बार यह ख्याल आया कि घर वाले परेशान होंगे.. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होगी वगैरह -वगैरह . उस वक्त मैंने सिर्फ खुद के लिए सोचा और वही किया जो मुझे ठीक लगा.
मैं पूरे 1 हफ्ते तक देहरादून की गलियों में यूं ही भटकता रहा और हर पल यही सोचता रहा कि कैसे मैं निशा से अपना पीछा छुड़ाऊ... कैसे मैं, मेरी और निशा की शादी होने से रोक दू.. पूरे एक हफ्ते देहरादून में भटकने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मैं दिल्ली जाकर निशा और उसके रईस बाप को साफ कह दूंगा कि मैं निशा से शादी नहीं कर सकता.. और इसके बाद उनकी जो भी प्रतिक्रिया होगी वह सह लूंगा... लेकिन अब मैं निशा से किसी भी हाल में शादी नहीं करूंगा, यह मैंने तय कर लिया था.
" अरमान.... "एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही किसी ने मेरा नाम पुकारा
" निशाआआआ.... तुमममम..... "उसको एयरपोर्ट के बाहर यूं अचानक देखकर मैं बुरी तरह चौका.
जिस नाम ने, जिस शब्द ने कई दिनों से मेरे अंदर तूफान मचा रखा था... वह आज मेरे सामने खड़ी थी और मुझे वापस दिल्ली मे देख कर, उसकी आंखों में खुशी थी.. लेकिन मेरी आंखों में दुख और नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था और मेरी लाचारी इस हद तक थी कि मैं उससे किसी पर जाहिर तक नहीं कर सकता था... मुझे एयरपोर्ट के बाहर देखते ही वह दौड़ कर मुझसे लिपट गई.
" कहां थे इतने दिन. "वो जोर से लिपट कर मुझसे पूछी. उसकी आंखों में मेरे लिए फिकर और प्यार दोनों था...
लेकिन मेरी आंखों में उसके लिए सिर्फ नफरत थी. गुस्सा तो उस पर बहुत आया, लेकिन मैंने अपने गुस्से का गला घोट कर उसे शांतिपूर्वक खुद से अलग किया.
" तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मैं आज.... अभी आने वाला हूं.. मैंने तो किसी को खबर तक नहीं दी थी.."
" वो मैं अपने एक दोस्त को छोड़ने आई थी और यहां तुम्हें देख लिया..." वापस मुझसे लिपटकर वह बोली.. "लेकिन तुम थे कहां इतने दिन..? तुम्हें जरा भी अंदाजा है कि तुम्हारे ऐसे गायब होने से घर वाले कितने परेशान हुए... मेरी तो जैसे जिंदगी गुजर गई थी तुम्हारे बिना... मैं हर एक पल यही दुआ करती रही कि तुम वापस आ जाओ...पुलिस ने भी बहुत कोशिश की लेकिन तुम्हारा कहीं कुछ पता नहीं चला और अपना मोबाइल क्यों बंद कर रखा है...."
वो और भी बहुत कुछ बोलती उस वक़्त, यदि मैंने उसे रोका ना होता तो..
"हो गया... अब मैं आ गया हूं ना... बस बात खत्म.."
मेरे बात करने के लहजे से वह थोड़ा हैरान हुई और मेरी तरफ देख कर बोली
"कोई प्रॉब्लम है क्या.."
" प्रॉब्लम तो तू ही है, तू चली जाए तो सारी प्रॉब्लम के आगे दि ऐंड का बोर्ड लग जाएगा.... "दिल किया कि गला फाड़ कर उसे सब बोल दू... लेकिन मैं बोल नहीं पाया... क्योंकि उसके रईस बाप का मुझे सपोर्ट जो चाहिए था
" कोई प्रॉब्लम नहीं...सब ठीक है"
" फिर घर चलो जल्दी से... सब बहुत खुश होंगे तुम्हें देखकर.... "वह एक बार फिर खुशी से चहकी
" तुम्हारी कार कहां है..?"
" मैं और मेरी फ्रेंड टैक्सी में ही यहां तक आए हैं मैंने अपनी फ्रेंड को कहा भी कि मैं उसे अपनी कार में छोड़ दूंगी लेकिन वह थोड़े पुराने किस्म की मानसिकता वाली है... कहती है कि उसे, मेरी तरह बडी -बड़ी गाड़ियों में बैठने का शौक नहीं है और यदि मुझे उसके साथ एयरपोर्ट तक आना है तो उसके साथ टैक्सी में आना पड़ेगा... वैसे अच्छा हुआ जो मैंने उसकी बात मान ली.. तुम भी तो आ गए... मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी ज्यादा खुश हूं तुम्हें वापस देखकर... अरमान !"
" काश कि मैं भी तुझे बता सकता कि मैं कितना दुखी हूं तुझे देखकर... "एक बार फिर मन में आया कि यह सब उसे बोल दू, लेकिन जुबान ने इस बार भी साथ नहीं दिया..
मैंने अपना मोबाइल ऑन किया और ऑफिस पर एक मैसेज छोड़ दिया कि मैं वापस आ गया हूं और फिर मैंने अपना मोबाइल वापस बंद कर दिया. मैं जान गया था कि अब सब का क्या रिएक्शन होने वाला था... सभी तरह तरह के सवाल पूछ कर दिमाग की दही कर देते... इसलिए मैंने फोन बंद कर दिया. मैंने एक टैक्सी वाले को बुलाया और उसे दिल्ली के बाहर बने अपने फॉर्म हाउस का पता देकर निशा के साथ टैक्सी में बैठ गया....
" घर क्यों नहीं चलते, कितना इंतजार कर रहे होंगे तुम्हारा..."एक बार फिर वही आवाज मेरे कानों में पड़ी जिसे मैं सुनना पसंद नहीं करता था.
" मैं कुछ समय अकेले बिताना चाहता हूं..."
" अरमान , आखिर बात क्या है...? तुम इतने मुरझाए हुए क्यों हो"
" मैंने कहा ना... कोई बात नहीं है.. "अबकी बार मैंने थोड़ा गुस्से में बोला... जिससे निशा चुप हो गई और खिड़की के बाहर देखने लगी...
इसके बाद पुरे रास्ते निशा कुछ नही बोली.. वो खामोश ही रही... मैने एक - दो बार उससे अपनी दिल की बात कहनी भी चाहिए, पर उसकी बेरुखी देख मैने अपना मन बदल लिया... और सोचा की फार्महाउस मे ही सीधे कह दूंगा.. वरना अभी यदि यही मेरे मन की बात सुन यदि वो रोने लगी तो..? हल्ला करने लगी तो..? इसे कौन संभालेगा.... इसे छूना तक पसंद नही है अब मुझे....
जारी..........(आखिरी भाग कल )
मेरी अन्य कहानियाँ...
1.8TH SEMESTER !(कॉलेज लाइफ पर आधारित )
2. समुन्दर का शिकारी (Fantasy webseries)
Sahil writer
14-Aug-2021 10:13 AM
बढ़िया कहानी है सर
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Yug Purush
14-Aug-2021 10:16 AM
Thank you sir
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🤫
14-Aug-2021 01:29 AM
ये 8th सेमेस्टर का ही भाग है शुरुआत में से इसी से रिलेट है ये कहानी....निशा अरमान शुरू में यहीं पढ़े ये नाम...
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Yug Purush
14-Aug-2021 04:59 AM
Characters bas wahi hai... Kahani alag hai
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🤫
14-Aug-2021 08:08 AM
ओके...!
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Apeksha Mittal
13-Aug-2021 10:58 PM
बहुत अच्छी कहानी सर , बस ऐसी कहानी पढ़ कर नए पार्ट का इंतिज़ार करना मुश्किल होता है
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Yug Purush
14-Aug-2021 05:00 AM
Aaj sham ko aapka intejaar khatm ho jayega 😁😁😁
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